निस्संतान योग..

निस्संतान योग..




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यह जान लें कि जिस प्रकार विवाह बिना जीवन




अधूरा है उसी प्रकार विवाह के उपरान्त सन्तान न




होना एक अभिशाप है। समाज में रहते हुए वंश वृद्धि न




हो तो लोग टोकने लगते हैं और हेय दृष्टि से देखते हैं।




सन्तान वंश वृद्धि के लिए आवश्यक है। सन्तान




की उत्पत्ति न हो या बहुत विलम्ब से हो तो वैवाहिक




जीवन नीरस हो जाता है। ईश्वर की कृपा व ग्रहों के




आशीर्वाद के बिना सन्तान का होना सम्भव नहीं है।




वैसे तो सन्तानहीनता के कई कारण हैं, लेकिन




दो कारण प्रमुख हैं-




1. या तो बच्चे उत्पन्न होते ही नहीं है और होते हैं




तो माता व पिता के पूर्व जन्मों के बुरे कार्यों के




कारण उनकी मृत्यु हो जाती है।




 




2. निस्सन्तान योग।




निस्सन्तान योग के विचार के लिए निम्न तथ्यों पर




ध्यान देना चाहिए-




1. लग्नेश निर्बल नहीं होना चाहिए।




2. पंचमेश निर्बल नहीं होना चाहिए।




3. सप्तमेश निर्बल नहीं होना चाहिए।




4. यदि कोई ग्रह निर्बल नहीं है तो उन पर पाप प्रभाव




है या पापग्रहों की दृष्टि है तो जिस कारण सन्तान




सम्बन्धी परेशानी हो सकती है।




यदि चारों ग्रह निर्बल या पाप पीड़ित हैं, अस्त हैं,




नीच राशि में हैं, पापकर्त्तरी योग में हैं तो निस्सन्तान




योग बनता है।




महर्षि पाराशर के अनुसार पूर्व जन्मों के बुरे कार्यों के




प्रभाव से तथा सर्पों के शाप से




भी सन्तानहीनता होती है। ज्योतिष में राहु सर्प




का द्योतक है। सन्तान सम्बन्धी भावों तथा ग्रहों पर




राहु की स्थिति हो, युति हो या दृष्टि हो तो सर्प




शाप के कारण सन्तानहीनता है। इसके लिए ये योग बनते




हैं-




1. राहु पंचम भाव में हो और मंगल दृष्टि उस पर




हो तो सन्तान को क्षति पहुंचती है।




2. यदि पंचमेश, पंचम भाव में राहु शनि के साथ हो और




उन पर चन्द्रमा की दृष्टि पड़े या चन्द्र की युति हो।




पंचमेश निर्बल है, लग्नेश और मंगल एक साथ कहीं बैठे




हों तथा सन्तान कारक गुरु राहु के साथ




हो तो सर्पशाप के कारण सन्तान




को क्षति पहुंचती है।




इसके अलावा माता या पिता, मामा का शाप,




बुरी स्त्रियों का शाप, देवी व देवताओं का शाप, दुष्ट




आत्माओं का शाप भी होते हैं। ये शाप




ही सन्तानहीनता के प्रमुख कारण हैं।




उपाय व पूजा पाठ द्वारा कुछ सीमा तक बचाव करके




सन्तान पायी जा सकती है।




 




प्रसिद्ध फलित ज्योतिष की पुस्तक फलदीपिका के




अनुसार इन योगों में निस्सन्तान होना पड़ता है-




1. यदि लग्न से चन्द्र और गुरु से पंचम भाव में पापग्रह




स्थिति हो या उनकी दृष्टि हो तथा शुभ ग्रह




की दृष्टि न हो।




2. पंचम भाव पापकर्त्तरी योग में हो।




3. जब लग्न से, चन्द्रमा से और सन्तान कारक गुरु से




पंचमेश त्रिाक भाव अर्थात् 6, 8, या 12वें हो।




4. यदि लग्न में पापग्रह हों, लग्नेश पंचम भाव में हो,




पंचमेश तृतीय भाव में हो और चन्द्रमा चतुर्थ भाव में




हो तो ऐसे जातक के कोई सन्तान नहीं होती है।




5. यदि चन्द्र पंचम भाव में विषम राशि में हो या विषम




राशि के नवांश में हो और उस पर सूर्य




की दृष्टि हो तो भी ऐसे व्यक्ति का कोई




बच्चा नहीं होगा और वह निस्सन्तान होने के कारण




दुःखी रहेगा।




वृष, सिंह, कन्या और वृश्चिक शुष्क




राशि समझी जाती है। यदि पंचम भाव या पंचमेश इनमें




चला जाए तो बच्चों की उत्पत्ति के लिए बाधक




होती है।




महिलाओं के क्षेत्र स्फुट और पुरुषों के बीज स्फुट




की राशि यदि क्रमशः विषम और सम हो तो वह उस




स्त्री और पुरुष के लिए बच्चा उत्पन्न कर पाने




की अयोग्यता का संकेत करते है




 




सन्तानहीनता से बचाव....




 




इसके लिए योग्य ज्योतिषी से सलाह लें और उपाय करें।




चिकित्सक से सलाह लेकर परीक्षण करें और सब ठीक है




तो उपाय अवश्य करें।




 




निम्नलिखित उपायों से भी सन्तानहीनता दूर




होती है-




1. हरिवंश पुराण का पाठ विधिविधान से करें।




2. सन्तान गोपाल का पाठ नित्य करें।




3. पीपल की सेवा करें।




4. शिवलिंग पर नंगे पैर मंदिर जाकर बिना नागा जल




चढ़ाएं और पुत्र या सन्तान प्राप्ति का संकल्प अवश्य




करें।




5. सन्तान गोपाल मन्त्र का नित्य पाठ करें।




सवा लाख मन्त्र अवश्य करें।




6. चांदी के ठोस हाथी से




अपनी गलतियों की माफी मांगें।




7. कुण्डली में जो शाप है उसका उपाय अवश्य करें।




8. तो भी सन्तान नहीं होती है दत्तक पुत्र के योग




देखकर सन्तान गोद ले लें अथवा योग्य चिकित्सक से परामर्श अवश्य करें।